अरे ओ सांभा..... ये छुछली मेली जुबान तो त्या हो दया है?

गब्बर - अरे ओ सांभा ..जा उस सेठ को ऊठा कर ले आ.

सांभा - पल सलदाल, सेठ की कोठी के आदे पुलिस लदी है. तैसे उठा तल लाऊंदा उसतो? एत ताम तरते हैं सेठ ती कोठी में बम लख देते हैं....

( पर सरदार, सेठ की कोठी के आगे पुलिस लगी है. कैसे ऊठाकर लाऊंगा उसको? एक काम करते हैं सेठ खी कोठी में बम रख देते हैं.)

गब्बर - हां सांभा ये ठीक कहा तूने...ऐसा ही तरते हैं...मेला मतलब ....ऐसा ही करते हैं...ये तेले साथ लहकल सुसली जुबान तो त्या होगया? अपने आप तुतलाने लदती है? पल ये बता अदल बम फ़त दया तो? क्या करेंगे?

(हां सांभा ये ठीक कहा तूने...ऐसा ही करते हैं...मेरा मतलब ....ऐसा ही करते हैं...ये तेरे साथ रहकर सुसरी जुबान तो क्या होगया? अपने आप तुतलाने लगती है? पर ये बता अगल बम फ़ट गया तो क्या करेंगे?)

सांभा - मेरे लहते चिंता ती तोई बात नही...अपुन के पाछ दूसला बम भी तो है, पहला फ़त दया तो दुछला लथ देंगे.

( मेरे रहते चिंता की कोई बात नही...अपुन के पाछ दूसरा बम भी तो है, पहला फ़ट गया तो दूसरा रख देंगे.)

गब्बर - वाह शाबास मेले सांभा, लदता है तेली अत्ल ताम तलने लद दई अब तो....अले ये छुछली मेली जुबान तो त्या हो दया है? अले तोई डाक्टल झटका तो बुलावो ले..........