गब्बर और सांभा हुये परेशान!

गब्बर और सांभा किसी तरह गिरते पडते ब्लागिंग छोडकर वापस अपने पुराने अड्डे पर पहुंच गए. रास्ते मे एक गांव में बच्चों ने इन पर पत्थर फ़ेंकें थे. उस समय सांभा की खुपडिया मे एक पत्थर लग जाने की वजह से सांभा तुतलाने लगा है.

गब्बर ने सांभा की देखभाल बडे प्रेम से की और एक डाक्टर को उसके क्लिनिक से ऊठवा कर सांभा का इलाज करवाया. सांभा को अब तुतलाने के अलावा कोई तकलीफ़ नही है. गब्बर और सांभा अड्डे पर बैठे बातचीत कर रहे हैं.

गब्बर - अरे सांभा..अब कैसी तबियत है रे तेरी..

सांभा - सलदाल..बिल्तुल ठीक ठाक है...पल सुसला बहुत दलद हो लहा है यहां पर....उस दांव के बच्चों ने मुझे भौत माला सलदाल...
(सरदार बिल्कुल ठीक ठाक है पर सुसरा बहुत दर्द हो रहा है यहां पर....उस गांव के बच्चों ने मुझे बहुत मारा)

गब्बर - अले ले मेला अच्छा बच्चा...चल अब दूध पी ले..फ़िर कुछ ताकत आयेगी तो गिरोह को नये सिरे से खडा करना है...

सांभा - पल सलदाल...आपको ये ताऊ की शोले मे ताम तलने ती त्या सुझी? साला गिलोह..साला..धंधा चौपट तल लिया...अब तैसे त्या तलेंगे?
( पर सरदार...आपको ये ताऊ की शोले मे काम करने की क्या सूझी? सारा गिरोह ..सारा..धंधा चौपट कर लिया..अब कैसे क्या करेंगे?)

गब्बर - अरे सांभा..अब क्या बताये..ई ससुरी हमारी जो फ़िल्मों मे काम करने की इच्छा थी ना..इसने मरवा डाला...और इस ताऊ के चक्कर मे चढ गये...और हमको मिला क्या? सिवाय बदनामी के...डकैती मे हमरा कितना नाम था? कैसा जलाल था ? और अब क्या बचा?
सांभा - हां सलदाल हम को टो टुश भी नही मिला...सलदाल...औल सलदाल अडर मेरी मानों टो इस टाऊ को ही ऊठवा डालो सलदाल...सुना है बला माल टमाया है इसने टाऊ की छोले छे?
( हां सरदार हमको कुछ भी नही मिला...सरदार....और सरदार अगर मेरी बात मानों तो इस ताऊ को ही ऊठवा लो सरदार...सुना है बडा माल कमाया है इसने ताऊ की शोले से?)

गब्बर - सांभा अब तू जल्दी से ठीक होजा...अभी तो हमारी काम करने की फ़ीस भी नही मिली है. ताऊ से तो हम ऐसा बदला लेंगे कि वो भी क्या याद करेगा?

सांभा - पल सलदाल छुना है वो किसी उडनटश्टरी का चेला है....अडर टहीं भद दया टो हमाली साली उधाली डूब जायेगी? और सांभा रोने लगता है
(पर सरदार सुना है वो किसी उडनतश्तरी का चेला है? अगर कहीं भग गया तो हमारी सारी उधारी डूब जायेगी?)

गब्बर - अरे सांभा तू फ़िकर मत कर.. और इतना बडा डाकू होकर सेंटी मत बन...डाकू धर्म का पालन कर... हमारा नाम भी गब्बर सरदार ऐसे ही नही है..इन दोनों गुरु चेलों को यहां से निकाल बाहर ना किया तो हमारा नाम भी गब्बर सरदार नही है. अब ये दोनों यहां नही रह सकते.

सांभा - हां सलदाल ऐछा ही टलना..वर्ना लोद टहेंगे कि " ठाया पीया टुश्श नहीं और गिलाछ फ़ोला बालहा आने ता.
( हां सरदार ऐसा ही करना ...वर्ना लोग कहेंगे की " खाया पिया कुछ नहीं और गिलास फ़ोडा बारह आने का)

5 comments:

निर्मला कपिला said...

गब्बर और साँभा कितने ब्लाग्ज़ पर काम कर रहे हैं ये भी अच्छी कहानी है शुभकामनायें

Arshia Ali said...

जैसा करेगा, वैसा भरेगा इंसान।
दुर्गा पूजा एवं दशहरा की हार्दिक शुभकामनाएँ।
( Treasurer-S. T. )

Udan Tashtari said...

ओह!! गब्बर सांभा यहाँ पर..सही है जी!

Mishra Pankaj said...

गब्बल छाम्भा अब पुले ब्लॉग जगत को तोतला बालने पर अमादा है क्या ..........

Smart Indian said...

ताऊ की जय हो! शोले के गोले को फिर से बम्ब बना दिया. शुभकामनायें!